Lekhika Ranchi

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रविंद्रनाथ टैगोर की रचनाएं


नई रौशनी

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विन्ध्यवासिनी ने जो बातें कमला से कही थीं वे सब उसने अपने पति से सुनी थीं, नहीं तो उस बेचारी को विलायत का हाल क्या मालूम था। कमला आई तो थी हर्ष का समाचार सुनाने, किन्तु अपनी प्रिय सहेली के मुख से ऐसे शब्द सुनकर उसको बहुत दु:ख हुआ। परन्तु समझदार लड़की थी। उसने अपने हृदयगत भाव प्रकट न होने दिए। उल्टा विनम्र होकर बोली- "बहन, मेरा भाई तो विलायत गया ही नहीं और न मेरा विवाह ऐसे व्यक्ति से हुआ है जो विलायत होकर आया हो, इसलिए विलायत का हाल मुझे कैसे मालूम हो सकता है?"
इतना कहकर कमला अपने घर चली गई।
किन्तु कमला का विनम्र स्वर होते हुए भी ये बातें विन्ध्य को अत्यन्त कटु प्रतीत हुईं। वह उनका उत्तर तो क्या देती, हां एकान्त में बैठकर रोने लगी।
इसके कुछ दिनों पश्चात् एक अजीब घटना घटित हुई जो विशेषत: वर्णन करने योग्य है। कलकत्ता से एक धनवान व्यक्ति जो विन्ध्य के पिता राजकुमार के मित्र थे, अपने कुटुम्ब-सहित आये और राजकुमार बाबू के घर अतिथि बनकर रहने लगे। चूंकि उनके साथ कई आदमी और नौकर-चाकर थे इसलिए जगह बनाने को राजकुमार बाबू ने अनाथ बन्धु वाला कमरा भी उनको सौंप दिया और अनाथ बन्धु के लिए एक और छोटा-सा कमरा साफ कर दिया। यह बात अनाथ बन्धु को बहुत बुरी लगी। तीव्र क्रोध की दशा में वह विन्ध्यवासिनी के पास गये और ससुराल की बुराई करने लगे, साथ-ही-साथ उस निरपराधिनी को दो-चार बातें सुनाईं।
विन्ध्य बहुत व्याकुल और चिन्तित हुई किन्तु वह मूर्ख न थी। उसके लिए अपने पिता को दोषी ठहराना योग्य न था किन्तु पति को कह-सुनकर ठण्डा
किया। इसके बाद एक दिन अवसर पाकर उसने पति से कहा कि- "अब यहां रहना ठीक नहीं। आप मुझे अपने घर ले चलिये। इस स्थान पर रहने में सम्मान नहीं है।"
अनाथ बन्धु परले सिरे के घमण्डी व्यक्ति थे। उनमें दूरदर्शिता की भावना बहुत कम थी। अपने घर पर कष्ट से रहने की अपेक्षा उन्होंने ससुराल का अपमान सहना अच्छा समझा, इसलिए आना-कानी करने लगे। किन्तु विन्ध्यवासिनी ने न माना और कहने लगी- "यदि आप जाना नहीं चाहते तो मुझे अकेली भेज दीजिये। कम-से-कम मैं ऐसा अपमान सहन नहीं कर सकती।"
इस पर अनाथ बन्धु विवश हो घर जाने को तैयार हो गये।

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